
कुछ दिन से मीडिया में सिण्डी क्राफ़ोर्ड के फोटोशाप किये बिना चित्र के बारे में बहुरूप से चर्चा हो रही है। पूरे का पूरा मीडिया जगत इस चित्र के बारे में विभिन्न प्रकार की बातें कर रहा है तथा ये कहने का यत्न कर रहा है कि कैसे स्त्री की सुन्दरता जैसी हो उसे वैसे ही अपनाना चाहिये।
मुझे इसमें एक अध्यात्मिक तरङ्ग दिखाई दी।
भारतीय संस्कृति सर्वदा चमड़ी से परे देखने की बात करती है। हमारा इतिहास भी ऐसी कई उदाहरणों से भरा पड़ा है। भले ही भारतीय संस्कृति ऐसे चित्रों को खिञ्चवाने या प्रसारित करने का अनुमोदन ना करे परन्तु आन्त्रिक संदेश तो एक ही है।
दुर्भाग्य की बात ये है कि आधुनिक भारतीय इन बातों को जीवन में नहीं अपना पाते तथा अपनी ही संस्कृति की अवहेलना करते हुये जीवन यापन करते हैं।
ऋषि अष्टावक्र की कथा तो आपको स्मरण ही होगी। ये माना जाता है कि उनके शरीर में आठ विकार थे जो कि उनके पिता द्वारा दिये श्राप से आये थे।
एक बार की बात है कि अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुँचे। उस समय राजा जनक ज्ञान कैसे प्राप्त किया जाये इस पर विचार विमर्श कर रहे थे। ऋषि अष्टावक्र के शरीर को देखकर सभी सभाजन हँस पड़े। तो उन्होने राजा जनक को सम्बोधन करते हुये कहा
तुम इन चमारों की सभा में बैठकर कैसे ज्ञान प्राप्त करोगे। ये तो चमड़ी से परे देख ही नहीं सकते।
ये सुनते ही राजा जनक उनके चरणों में गिर गये तथा उनको अपना गुरु मान लिया।
इस पूरे आख्यान से मैं यही कहना चाहता हूँ कि भारतीय संस्कृति भी वो ही संदेश देती है जो कि सिण्डी क्रोफ़ोर्ड का ये चित्र देना चाहता है, भले ही भारतीय संस्कृति का ढङ्ग भिन्न हो।











