संस्कृत में कहानी–कुशल वृद्ध

जैसा कि हमने पहले भी देखा तथा पढ़ा है, संस्कृत भाषा में लघु कथायें पढ़ने का अपना ही आनन्द है। जो संस्कृत भाषा को सीख रहे हैं, उनके लिये तो यह एक उत्तम अभ्यास क्रिया के जैसा ही है।

सरल लघु कथा के माध्यम से धातुओं की विभक्तियों का बहुत अच्छे प्रकार से अभ्यास हो जाता है। वाक्यों का अर्थ समझ आने से भाषा में रुचि बढ़ती है तथा आत्मविश्वास भी उत्पन्न होता है।

इसी श्रङ्खला को आगे बढ़ाते हुये आज हम एक और लघु कथा संस्कृत में आपके लिये लाये हैं।

संस्कृत में कहानी–कुशलः वृद्धः

एकः वृद्धः आसीत्। सः क्षुधितः अभवत्। समीपे एकः आम्रवृक्षः आसीत्। वृद्धः आम्रवृक्षस्य समीपम् अगच्छत्। वृक्षे बहूनि फलानि अपश्यत्।

सः अचिन्तयत्

अहं वृद्धः। मम शरीरे शक्तिः नास्ति। वृक्षः उन्नत अस्ति। कथम् उपरि गच्छामि। कथं फलं प्राप्नोमि।

वृक्षस्य उपरि वानराः आसन्। वृद्धः एकम् उपायम् अकरोत्। सः पाषाणखण्डान् स्वीकृत्य अक्षिपत्। वानराः कुपिताः अभवन्। ते फलानि अक्षिपन्। वृद्धः तानि फलानि स्वीकृत्य सन्तोषेण अखादत्।

(इस कहानी का संस्कृत रूप संस्कृतभारती के द्वारा प्रकाशित पत्रालयद्वारा संस्कृतम् पत्रिका के चतुर्थ भाग में से लिया गया है)

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