संस्कृत में कहानी–बुद्धिमान शिष्य

संस्कृत भाषा में लघु कथायें सुनने का आनन्द इस लिये है कि ये कथायें प्रायः बालकों तथा बड़े-बूढ़ों का मनोरञ्जन करती हैं तथा साथ ही जीवन की बहुमूल्य शिक्षायें भी प्रदान करती हैं।

पुराने समय में बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी से ऐसे ही कहानियाँ सुनने की प्रतीक्षा करते रहते थे क्योंकि उस समय टीवी या कम्पयूटर इत्यादि तो हुआ नहीं करते थे।

आज के समय में जब बच्चे प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत ही कम्पयूटर आदि चलाना सीख लेते हैं तो ऐसे में ये लघु कथायें कम्पयूटर पर पढ़ने में अधिक आनन्द आता है। इसी अर्थ को पूरा करने हेतु हम ये लघु कथायें आपके लिये संस्कृत भाषा में लाये हैं।

संस्कृत में कहानी–बुद्धिमान् शिष्यः

काशीनगरे एकः पण्डितः वसति। पण्डितसमीपम् एकः शिष्यः आगच्छति।

शिष्य वदति

आचार्य। विद्याभ्यासार्थम् अहम् आगतः।

पण्डितः शिष्यबुद्धिपरीक्षार्थं पृच्छति

वत्स। देवः कुत्र अस्ति।

शिष्यः वदति

गुरो। देवः कुत्र नास्ति। कृपया भवान् एव समाधानं वदतु।

सन्तुष्टः गुरुः वदति

देवः सर्वत्र अस्ति। देवः सर्वव्यापी। त्वं बुद्धिमान्। अतः विद्याभ्यासार्थम् अत्रैव वस।

(इस कहानी का संस्कृत रूप संस्कृतभारती के द्वारा प्रकाशित पत्रालयद्वारा संस्कृतम् पत्रिका के प्रथम भाग में से लिया गया है)

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