महाभारत के अन्त में मरने वाला योद्धा कौन था

महाभारत का युद्ध भीषण तथा भयङ्कर था। दोनों पक्षों को हानि सहनी पड़ी। असंख्य योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो गये। भगवान की माया देखिये कि महाभारत के युद्ध का परिणाम देखने के लिये मुठ्ठी भर योद्धा ही जीवित बचे। आप यत्न करें तो आप अपनी उङ्गलियों पे उनको गिन सकते हैं।

पाण्डव पक्ष के लगभग सभी राजा मारे जा चुके थे। पाण्डवों के पुत्रों के साथ-साथ सभी सगे सम्बन्धि भी मारे जा चुके थे। श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पाण्डवों के पौत्र का संरक्षण किया था नहीं तो उनका वंश ही नष्ट हो जाता। भीम का पुत्र घटोत्कच, अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँचो पुत्र, पिता, भाई तथा अन्य लोग मारे गये।

कौरव पक्ष में भीषम पितामह (वो अन्त में मरे थे परन्तु वो मृत्यु के वश में नहीं थे), गुरु द्रोण, कर्ण, शकुनी, सभी राजा तथा धृतराष्ट्र के सभी पुत्र भी मारे जा चुके थे।

महाभारत के अन्त में मरने वाला योद्धा दुर्योधन था।

भीम से गदा-युद्ध में परास्त होने के उपरान्त भूमि पे पड़ा था। असहाय पीड़ा थी परन्तु अभी चन्द साँसें बची थीं। उसने अश्वत्थामा को सेनापति घोषित कर दिया था जिसने पाण्डवों को अकेले ही धोखे से मारने की ठान ली थी। परन्तु श्री कृष्ण की कृपा से वो बच गये।

अश्वत्थामा ने आकर ये समाचार मरनासन्न दुर्योधन को सुनाया कि उसने पाण्डवों को सोते हुये मारने का यत्न किया परन्तु उनके स्थान पर उनके पुत्रों का वध हो गया। ये सुनकर दुर्योधन के मुख से ऐसे शब्द निकले था उसका निधन हो गया।

न मेऽकरोत् तद् गाङ्गेयो न कर्णो न च ते पिता।

यत् कत्वा कृपभोजाभ्यां सहितेनाद्य मे कृतम्।।

आज आचार्य कृप और कृतवर्मा के साथ तुमने जो कार्य कर दिखाया है वह ना गङ्गानन्दन भीषम, ना कर्ण और ना ही तुम्हारे पिता जी ही कर सके।

स च सेनापतिः क्षुद्रो हतः सार्धंशिखण्डिना।

तेन मन्ये मघवता सममात्मानमद्य वै।।

शिखण्डी सहित वह नीच सेनापति धृष्टद्युम्न मार डाला गया। इस से आज निश्चय ही मैं अपने आप को इन्द्र के समान समझता हूँ।

स्वस्ति प्राप्नुत भद्रं वः सवर्गे नः संगमः पुनः।

तुम सब लोगों का कल्याण हो। तुम्हें सुख प्राप्त हो। अब स्वर्ग में ही हम लोगों का पुनर्मिलन होगा।

इन्हीं शब्दों के साथ दुर्योधन ने अपने प्राण त्याग दिये। महाराज धृतराष्ट्र के सारथि सञ्जय जिनको महार्षि व्यास की कृपा से दिव्य दृष्टि प्राप्त थी और जो उनको महाभारत के युद्ध का सारा वृतान्त उन्हे सुना रहे थे उन्होने कहा–

महाराज, इस प्रकार आप का पुत्र मारा गया। वो सबसे पहले युद्ध भूमि में गया था तथा सब के मरने के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त हुआ।

मुझे आशा हैै कि जो इन विषयों में रुचि रखते हैं उन्हे पता है कि अश्वत्थामा को पाण्डवों ने पकड़ तो लिया था परन्तु द्रौपदी के ही कहने पर उसको छोड़ दिया था।

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