अलक्ष्मी (लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहन) कौन है तथा कहाँ कहाँ निवास करती है

आदि तथा अन्त से रहित, ऐश्वर्य शाली, प्रभुता सम्पन्न तथा जगत् के स्वामी नारायण विष्णु ने प्राणियों को व्यामोह में डालने के लिये इस जगत् को दो प्रकार का बनाया है। उन महातेजस्वी विष्णु ने ब्राह्मणों, वेदों, सनातन वैदिक धर्मों, श्री तथा श्रेष्ठ पद्मा की उत्पत्ति करके एक भाग किया और अशुभ तथा ज्येष्ठा अलक्ष्मी, वेदविरोधी अधम मनुष्यों तथा अधर्म का निर्माण करके एक दूसरा भाग किया।

भगवान् जनार्दन ने पहले अलक्ष्मी का सृजन करके ही पद्मा (लक्ष्मी)- का सृजन किया है, इसी लिये अलक्ष्मी ज्येष्ठा कही गयी हैं। अमृत की उत्पत्ति के समय महाभयङ्कर विष निकलने के पश्चात् पहले वे ज्येष्ठा अशुभ अलक्ष्मी उत्पन्न हुई, ऐसा सुना गया है। उसके अनन्तर विष्णुभार्या लक्ष्मी पद्मा आविर्भूत हुई।

अलक्ष्मी कहाँ कहाँ निवास करती है।

  1. जिसके घर में वैदिकों, द्विजों, गौओं, गुरुओं तथा अतिथियों की पूजा न होती हो और जहाँ पति-पत्नी एक-दूसरे के विरोधी हों
  2. जहाँ पर देवाधिदेव, महादेव तथा तीनों भुवनों के स्वामी भगवान् रुद्रकी निन्दा होती हो।
  3. जहाँ भगवान् वासुदेव के प्रति भक्ति न हो, जहाँ सदाशिव न स्थापित हों, जहाँ मनुष्यों के घर में जप-होम आदि न होता हो, भस्म-धारण न किया जाता हो, पर्वपर विशेष करके चतुर्दशी तथा कृष्णाष्टमी तिथि पर रुद्रपूजन न होता हो, लोग सन्ध्योपासन के समय भस्म धारण न करते हों, जहाँ पर लोग चतुर्दशी के दिन महादेव का यजन न करते हों, जहाँ लोग विष्णु के नाम-संकीर्तन से विमुख हों।
  4. जहाँ वेदध्वनि तथा गुरु पूजा आदि न होते हों, उन स्थानों पर और पितृ कर्म (श्राद्ध आदि) से  विमुख हों।
  5. जिस घर में रात्रि-वेला में (लोगों के बीच) परस्पर कलह होता हो।
  6. जिसके यहाँ शिवलिङ्ग का पूजन न होता हो तथा जिसके यहाँ जप आदि न होते हों, अपितु रुद्रभक्त्ति की निन्दा होती हो।
  7. जिस घर में अतिथि, श्रोत्रिय (वैदिक), गुरु, विष्णु भक्त्त और गायें न हों।
  8. जहाँ बालकों के देखते रहने पर उन्हें बिना दिये ही लोग भक्ष्य पदार्थ स्वयं खा जाते हों।
  9. जिस घर में या देश में पापकृत्य में संलग्न रहने वाले मूर्ख तथा दयाहीन लोग रहते हों।
  10. घर और घर की चार दीवारी को तोड़ने वाली अर्थात् घर की मान – मर्यादा को भङ्ग करने वाली, दुःशीलता के कारण किसी भी प्रकार प्रसन्न न होने वाली गृहिणी जिस घर में हो।
  11. जहाँ काँटेदार वृक्ष हों, जहाँ निष्पाव (सेम आदि)- की लता हो और जहाँ पलाश का वृक्ष हो।
  12. जिनके घरों में अगस्त्य, आक आदि दूधवाले वृक्ष, बन्धुजीव (गुलदुपहरिया)- का पौधा, विशेषरूप से करवीर, नन्द्धा वर्त (तगर) और मल्लिका के वृक्ष हों। जिस घर में अपराजित, अजमोदा, निम्ब, जटामांसी, बहुला (नीलका पौधा), केले के वृक्ष हों। जहाँ ताल, तमाल, भल्लात (भिलावा), इमली, कदम्ब और खैर के वृक्ष हों। जिनके घरों में बरगद, पीपल, आम, गूलर तथा कटहल के वृक्ष हों। जिसके निम्बवृक्ष में, बगीचे में अथवा घरमें कौवों का निवास हो और जिसके घरमें दण्डधारिणी तथा कपालधारिणी स्त्री हो।
  13. जिस घर में एक दासी, तीन गायें, पाँच भैंसे, छः घोड़े और सात हाथी हों।
  14. जिस घर में प्रेतरूप तथा डाकिनी काली-प्रतिमा स्थापित हो और जहाँ भैरव-मूर्ति हो।
  15. जिस घर में भिक्षुबिम्ब आदि हो।
  16. जो मूर्ख तथा अज्ञानी लोग अकेले ही पका हुआ अन्न खाते हैं और स्नान आदि मङ्गलकार्यों से विहीन रहते हैं, उनके घर में।
  17. जो स्त्री शौचा चार से विमुख हो, देहशुद्धि से रहित हो तथा सभी (भक्ष्याभक्ष्य) पदार्थों के भक्षण में तत्पर रहती हो, उसके घर में।
  18. जो गृहस्थ मानव स्वयं मलिन मुखवाले, गन्दे वस्त्र धारण करने वाले तथा मलयुक्त्त दाँतों वाले हैं, उनके घर में।
  19. जो लोग अपना पैर नहीं धोते, सन्ध्या के समय शयन करते हैं और सन्ध्या वेला में भोजन करते हैं, उनके घर में
  20. जो मूर्ख मनुष्य बहुत भोजन करते हैं, अत्यधिक पान करते हैं और जुआ-सम्बन्धी वार्ता करने तथा उसके खेलने में तत्पर रहते हैं, उनके घर में।
  21. जो मनुष्य मद्धपान में संलग्न रहते हैं, पापपरायण हैं, मांस-भक्षण में तत्पर रहते हैं और परायी स्त्रियों में आसक्त्त रहते हैं, उनके घर में।
  22. जो लोग पर्व के अवसर पर भगवान् की पूजा में संलगन नहीं रहते, दिन में तथा सन्ध्या के समय मैथुन करते हैं, उनके घर में। जो लोग कुत्ते तथा मृग की भाँति पीछे से मैथुन करते हैं और जल में मैथुन करते हैं।
  23. जो नराधम रजस्वला स्त्री के साथ अथवा चाण्डाली के साथ अथवा कन्या के साथ अथवा गोशाला में सम्भोग करता है, उसके घर में।
  24. कृत्रिम साधनों से सम्पन्न होकर जो मनुष्य स्त्री के पास जाता है और स्त्री संसर्ग करता है, उसके यहाँ।
  25. जो महादेव की तो निन्दा करता है परन्तु विष्णु का पूजन करता है उसके यहाँ

(गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित पत्रिका कल्याण के विशेषाङ्क श्रीलिङ्गमहापुराण के अन्तर्गत उत्तर भाग में से लिया गया)

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