काशी ही ‘शिवलोक है’ का निर्माण कैसे हुआ

वे जो सदाशिव हैं, उन्हें परमपुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं। वे अपने मस्तक पर आकाश-गङ्गा को धारण करते हैं। उनके भाल देश में चन्द्रमा शोभा पाते हैं। उनके पाञ्च मुख हैं और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र हैं। उनका चित्त सदा प्रसन्न रहता है। वे दस भुजाओं से युक्त्त और त्रिशूल धारी हैं। उनके श्री अङ्गों की प्रभा कर्पूर के समान श्वेत-गौर है। वे अपने सारे अङ्गों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक ही समय शक्त्ति के नाथ ‘शिवलोक’ नामक क्षेत्र का निर्माण किया था।

उस उत्तम क्षेत्र को ही काशी कहते हैं। वह परम निर्वाण या मोक्ष का स्थान है, जो सबके ऊपर विराजमान है। यह प्रिया-प्रियतमरूप शक्त्ति और शिव, जो परमानन्द स्वरूप हैं, उस मनोरम क्षेत्र में नित्य निवास करते हैं।

काशीपुरी परमानन्द रूपिणी है। मुने शिव और शिवा ने प्रलय काल में भी कभी उस क्षेत्र को अपने सानिध्य से मुक्त्त नहीं किया है। इसी लिये विद्वान् पुरुष उसे ‘अविमुक्त्त क्षेत्र’ के नाम से भी जानते हैं।

वह क्षेत्र आनन्द का हेतु है। इस लिये पिनाकधारी शिव ने पहले उसका नाम ‘आनन्दवन’ रखा था। उसके बाद वह ‘अविमुक्त्त’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

(गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित पत्रिका कल्याण के एक विशेषाङ्क से लिया गया)

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