pawansingla

Pawan Kumar Singla is a retired English lecturer living in Nabha, Punjab. He has studied B. Sc. (Medical), M. A. (English, Political Science), B. Ed., and has strong interest in Yoga, languages, and Indian traditions. He likes to learn new things in his life (started driving a car when he was 63 and can now type in four languages including Punjabi, Hindi, English and Sanskrit).

महाभारत काल के जनपदों के नाम

महाभारत के तीसरे खण्ड में सञ्जय धृतराष्ट्र को भारत वर्ष के जनपद जो कि आधुनिक युग में जिला या District के नाम से जाने जाते हैं उनके बारे में बताते हैं। ये कहना यथार्थ होगा कि सम्भवतः उस समय जनपद का अर्थ जिला ना हो कर एक विशाल नगर के समान होता हो। पूर्ण विश्वास […]

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महाभारत काल की मुख्य नदीयों के नाम

महाभारत के तीसरे खण्ड में सञ्जय धृतराष्ट्र को उस समय की मुख्य नदीयों के नाम बताते हैं। वे इस प्रकार हैं– गङ्गा, सिन्धु, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, बाहुदा, महानदी, शतद्रू, चन्द्रभागा, महानदी, यमुना, दृषद्वती, विपाशा, विपापा, स्थूलबालुका, वेत्रवती, कृष्णवेणा, इरावती, वितस्ता, पयोष्णी, देविका, वेदस्मृता, वेदवती, त्रिदिवा, इक्षुला, कृमि, करीषिणी, चित्रवाहा, चित्रसेना, गोमती, धूतपापा, महानदी वन्दना, कौशिकी, त्रिदिवा,

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भगवान कृष्ण के विभिन्न नामों का अर्थ तथा व्युतपत्ति

महाभारत के तीसरे खण्ड में धृतराष्ट्र सञ्जय से श्री कृष्ण के नामों के अर्थ तथा व्युतपत्ति के बारे में पूछते हैं तो सञ्जय अपनी सृमिति से ही उन्हें कुछ नामों के बारे में बताते हैं– भगवान् समस्त प्राणियों के निवासस्थान हैं तथा वे सब भूतों में वास करते हैं, इस लिये ‘वसु’ हैं एवं देवताओं

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ਬੁੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਦੀਆਂ ਕਾਫੀਆਂ–ਉੱਠ ਜਾਗ ਘੁਰਾੜੇ ਮਾਰ ਨਹੀਂ

ਉੱਠ ਜਾਗ ਘੁਰਾੜੇ ਮਾਰ ਨਹੀਂ, ਇਹ ਸੌਣ ਤੇਰੇ ਦਰਕਾਰ ਨਹੀਂ। ਇਕ ਰੋਜ਼ ਜਹਾਨੋਂ ਜਾਣਾ ਏ, ਜਾ ਕਬਰੇ ਵਿਚ ਸਮਾਣਾ ਏ, ਤੇਰਾ ਗੋਸ਼ਤ ਕੀੜਿਆਂ ਖਾਣਾ ਏ, ਕਰ ਚੇਤਾ ਮਰਗ ਵਿਸਾਰ ਨਹੀਂ। ਤੇਰਾ ਸਾਹਾ ਨੇੜੇ ਆਇਆ ਏ, ਕੁਝ ਚੋਲੀ ਦਾਜ ਰੰਗਾਇਆ ਏ, ਕਿਉਂ ਆਪਣਾ ਆਪ ਵੰਜਾਇਆ ਏ, ਐ ਗਾਫ਼ਲ ਤੈਨੂੰ ਸਾਰ ਨਹੀਂ। ਤੂੰ ਸੁੱਤਿਆ ਉਮਰ ਵੰਜਾਈ ਏ,

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ਬੁੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਦੀਆਂ ਕਾਫੀਆਂ–ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਨਵੀਉਂ ਨਵੀਂ ਬਹਾਰ

ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਨਵੀਉਂ ਨਵੀਂ ਬਹਾਰ। ਜਾਂ ਮੈਂ ਸਬਕ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਪੜ੍ਹਿਆ, ਮਸਜਦ ਕੋਂਲੋਂ ਜੀਉੜਾ ਡਰਿਆ। ਡੇਰੇ ਜਾ ਠਾਕਰ ਦੇ ਵੜਿਆ, ਜਿੱਥੇ ਵੱਜਦੇ ਨਾਦ ਹਜਾਰ। ਜਾਂ ਮੈਂ ਰਮਜ਼ ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਪਾਈ, ਮੈਨਾ ਤੋਤਾ ਮਾਰ ਗਵਾਈ। ਅੰਦਰ ਬਾਹਰ ਹੋਈ ਸਫਾਈ, ਜਿੱਤ ਵਲ ਵੇਖਾ ਯਾਰੋ ਯਾਰ। ਹੀਰ ਰਾਂਝੇ ਦੇ ਹੋ ਗਏ ਮੇਲੇ, ਭੁੱਲੀ ਹੀਰ ਢੂੰਡੇਂਦੀ ਬੇਲੇ। ਰਾਂਝਾ ਯਾਰ

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धनुर्वेद के भेद कौन कौन से हैं

महाभारत के प्रथम खण्ड अनुसार जब कुरु राजकुमार बड़े होने लगे तो उनकी आरम्भिक शिक्षा का भार राजगुरु कृप के पास गया। उन्हीं से कुरु राजकुमारों ने धनुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की धनुर्वेद के भेद चार हैं मुक्त्त– जो बाण छोड़ दिया जाये उसे ‘मुक्त्त’ कहते हैं अमुक्त्त–जिस अस्त्र को हाथ में लेकर प्रहार किया

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रसोई में खाने-पीने के पदार्थों का भेद

इनके पाँच रूप हैं – भक्ष्य–जिनहें दाँतों से काट-काट कर खाया जाता है जैसे माल पूये भोज्य–दाँत का सहारा न लेकर जो केवल जिह्वा के व्यापार से भोजन किया जाता है, जैसे हलुआ और खीर आदि पेय–जो पीने योग्य हो जैसे दुग्ध आदि चोष्य–चूसने योग्य वस्तु जिसका केवल रस मात्र ही ग्रहण किया जाता हो

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अर्जुन ने रङ्ग भूमि में कौन कौन से अस्त्रों का संचालन किया ?

ये महाभारत के प्रथम खण्ड से लिया गया है जब कुरु राजकुमार तरुण अवस्था में गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूर्ण कर हस्तिनापुर आ गये थे। उनकी विद्या के प्रदर्शन के लिये आयोजित रङ्गभूमि में सभी राजकुमारों ने अपना युद्ध कौशल दिखलाया। ये वही रङ्गभूमि है जहाँ पर कर्ण अर्जुन को चुनौती देता है तथा सभा

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अलक्ष्मी (लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहन) कौन है तथा कहाँ कहाँ निवास करती है

आदि तथा अन्त से रहित, ऐश्वर्य शाली, प्रभुता सम्पन्न तथा जगत् के स्वामी नारायण विष्णु ने प्राणियों को व्यामोह में डालने के लिये इस जगत् को दो प्रकार का बनाया है। उन महातेजस्वी विष्णु ने ब्राह्मणों, वेदों, सनातन वैदिक धर्मों, श्री तथा श्रेष्ठ पद्मा की उत्पत्ति करके एक भाग किया और अशुभ तथा ज्येष्ठा अलक्ष्मी,

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CHANDIGARH ADMINISTRATION (ELECTRICAL INSPECTORATE) DELUXE BUILDING, G. FLOOR SEC. 9-D, CHD.

Secretary Licensing Board, U. T., Chandigarh invites applications for the grant of Supervisor Competency Certificate/Wireman Permit (Class ‘A’ & ‘B’) for exemption from examination and Electrical Contractor License as per below:- 1 Last Date of receipt of application for Wireman, Supervisor (Exemption only) 15.06.2016 2 Last Date of receipt of application for Contractor License 15.07.2016

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दिव्य नदी गङ्गा के विभिन्न नामों का अर्थ

नदियों के नाम उनके विशिष्ट शब्दगत अर्थ एवं गुणधर्म को लेकर प्रवृत होते हैं। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् मैक्समूलर के विचार माननीय हैं। उनका कथन है- ‘वैदिक सूक्तों में तथा नदियों से सम्बन्धित ऋचाओं में चर्चित नदियों को पुनः वे छोटी हों या बड़ी अलग-अलग नाम दिये गये। सभी प्रदेशों के निवासी यह

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गाण्डीव धनुष का इतिहास

गाण्डीव धनुष का इतिहास बड़ा रहस्यमय है। इसके इतिहास में कई धनुषों का इतिहास छिपा है। यों महाभारत में तो इसके सम्बन्ध में इतना ही कहा गया है कि खाण्डव दाह के समय अग्नि ने उसे वरुण से माँगकर अर्जुन को दिया था (आदिपर्व 225) तथा महाप्रस्थान के समय उसे वरुण को ही वापस करने

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पञ्चामृत कैसे बनायें

पञ्चामृत का हम भोग लगाकर, प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते हैं। इस के बनाने की विधि की जानकारी हमें अवश्य होनी चाहिये। व्यवस्थाः- पञ्चामृत में पाँच वस्तुयें काम में लाई जाती हैं। यह हैं- दूध दही घृत शहद तुलसी पत्र दूध अधिक मात्रा में, दही कम, घी बहुत थोड़ा, शहद आवश्यकता अनुसार और

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चिकित्सा कितने प्रकार की होती है

मानव शरीर का उपचार विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है। भारतीय पद्धति के अनुसार चिकित्सा पाँच प्रकार की होती है– मानवीय चिकित्सा – जड़ी-बूटी आदि से बनी औषधि से उपचार। प्राकृतिक चिकित्सा – अन्न, जल, वायु, धूप व मिट्टि आदि से उपचार। यौगिक चिकित्सा – व्यायाम, आसन, प्राणायाम, संयम, ब्रह्मचर्य आदि से उपचार। दैवी

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भगवद्गीता में अर्जुन द्वारा किये गये प्रश्न

श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। इस ग्रन्थ में विभिन्न प्रकार के आधायत्मिक रहस्यों का उल्लेखन किया गया है। पुरातन काल से यह ज्ञान की गङ्गा जिज्ञासुओं को पथप्रदर्शित तथा प्रोत्साहित करती रही है। श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्याय हैं और ये महाकाव्य महाभारत का एक भाग है। इस भाग में भगवान कृष्ण तथा

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ज्वर की उत्पत्ति कैसे हुई

महाभारत के पञ्च खण्ड में ज्वर की उत्पत्ति का वर्णन आता है। ज्वर की अनुभूति शरीर के तापमान से होती है हमारे जीवन में विश्राम हेतु आता है जब शरीर के किसी अङ्ग या प्रणाली के कार्य में बाधा अथवा व्याधि उत्पन्न होती है। इस लेख से हम जानेंगे कि ज्वर की संकल्पना कैसे हुई।

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देवनदी गङ्गा के नाम का क्या अर्थ है

गङ्गा नदी का नाम कुछ ऐसा है कि नाम सुनते ही मन में भक्ति भाव का प्रवाह होता है। शीतल जल तथा भारतीय संस्कृति में दिव्य स्थान पाने वाली इस नदी की महिमा अपार है। इस लेख में हम जानेंगे कि गङ्गा नाम का अर्थ क्या है। पतित पावनी गङ्गा को विविध नामों से जाना

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आसन लगानाऔर व्यायाम करना भी एक कर्म–फल है

आसन लगाने (Yogic Asana) से कुपथ्यजन्य रोग (Disease By intake of food or Acquired) तो होते ही नहीं और प्रारब्धजन्य रोगों (Disease already existing in the body or inherited ) में भी उतनी तेजी नहीं रहती, क्योंकि आसन और व्यायाम को भी कर्म (Action)  ही माना जाता है। अतः उनका भी फल (Fruit) होता है।

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काशी ही ‘शिवलोक है’ का निर्माण कैसे हुआ

वे जो सदाशिव हैं, उन्हें परमपुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं। वे अपने मस्तक पर आकाश-गङ्गा को धारण करते हैं। उनके भाल देश में चन्द्रमा शोभा पाते हैं। उनके पाञ्च मुख हैं और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र हैं। उनका चित्त सदा प्रसन्न रहता है। वे दस भुजाओं से युक्त्त और त्रिशूल धारी

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