भगवद्गीता में अर्जुन द्वारा किये गये प्रश्न

श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। इस ग्रन्थ में विभिन्न प्रकार के आधायत्मिक रहस्यों का उल्लेखन किया गया है। पुरातन काल से यह ज्ञान की गङ्गा जिज्ञासुओं को पथप्रदर्शित तथा प्रोत्साहित करती रही है। श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्याय हैं और ये महाकाव्य महाभारत का एक भाग है। इस भाग में भगवान कृष्ण तथा उनके परम सखा अर्जुन का संवाद है। इस संवाद में अर्जुन ने जो कि सम्पूर्ण मनुष्य जाति का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं कई प्रश्न पूछे जो कि प्रायः ही जिज्ञासु के मन को विचलित तथा संदेह से भर देते हैं।

इस लेख से हम जानेंगे कि अर्जुन ने कौन-कौन से प्रश्न पूछे–

श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के सातवें श्लोक के पूर्वार्ध में अपनी दुर्बलता के कारण ‘मुझे क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये’ – इस विषय में अर्जुन का प्रश्न है। तत्पश्चात् चौवनवें श्लोक में ‘स्थित प्रज्ञ के क्या लक्षण हैं? वह कैसे बोलता है? कैसे बैठता है? और कैसे चलता है? – इस तरह जिज्ञासा पूर्वक चार प्रश्न हैं।

तीसरे अध्याय के पहले और दूसरे श्लोक में ‘जब कर्म से बुद्धि ही श्रेष्ठ है, तो मेरे को घोर कर्म में क्यों लगाते हैं ? जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ, वह एक बात कहिये’ – इस तरह प्रार्थना पूर्वक प्रश्न है। छत्तीसवें श्लोक में ‘पाप करना न चाहते हुये भी मनुष्य के द्वारा पाप कराने वाला कौन है ?’ – इस तरह जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न है।

चौथे अध्याय के चौथे श्लोक में ‘आपने सूर्य को उपदेश कैसे दिया ?’ – इस तरह भगवान् के अवतार के विषय में अर्जुन का जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न है।

पाँचवें अध्याय के पहले श्लोक में संन्यास और योग के विषय में अर्जुन का प्रार्थना पूर्वक प्रश्न है।

छठे अध्याय के तैंतीसवें-चौंतीसवें श्लोकों में अर्जुन का मन के निग्रह के विषय में (अपनी मान्यता प्रकट करते हुये) प्रश्न है। फिर सैंतीसवें-अड़तीसवें श्लोकों में योगभ्रष्ट की गति के विषय में अर्जुन का सन्देह पूर्वक प्रश्न है।

आठवें अध्याय के पहले-दूसरे श्लोकों में ब्रह्म, अध्यात्म आदि के विषय में अर्जुन का जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न है।

दसवें अध्याय के सत्रहवें श्लोक में प्रश्न है।

ग्यारहवें अध्याय के इकतीसवें श्लोक में प्रार्थना पूर्वक प्रश्न है।

बारहवें अध्याय के पहले श्लोक में ‘सगुण और निर्गुण उपासकों में कौन श्रेष्ठ है’ – इस विषय में अर्जन का जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न है।

चौहवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में गुणातीत के विषय में अर्जुन का प्रश्न है।

सत्रहवें अध्याय के पहले श्लोक में निष्ठा को लेकर अर्जुन का प्रश्न है।

अठारहवें अध्याय के पहले श्लोक में संन्यास और योग के विषय में अर्जुन का जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न है।

(गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित गीता-दर्पण नामक पुस्तक जिसके  लेखक स्वामी रामसुखदास हैं से लिया गया)

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